- परंपरागत खेती को छोड़कर बढ़े प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर किसान

परंपरागत खेती को छोड़कर बढ़े प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर किसान

-जीरो बजट कृषि को बढ़ावा देता प्राचीन ज्ञान, यूरिया डी.ए.पी. को कम कर प्राकृतिक खेती के घटकों का किया प्रयोग भिण्ड। जिले के विकासखंड अटेर के ग्राम सकराया के कृषक अरविन्द शर्मा ने परंपरागत खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाया है। कृषक अरविन्द शर्मा ने अपनी जुबानी अपनी कहानी से अवगत कराते हुए कहा कि आत्मा किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग जिला भिण्ड द्वारा भोपाल में आयोजित किये गये जीरो बजट (प्राकृतिक खेती) के राज्य स्तरीय कृषक प्रशिक्षण में मुझे आत्मा स्टॉफ के साथ जाने का अवसर मिला। जहॉं पर मैंने प्राकृतिक खेती के जनक सुभाष पालेकर जी से प्राकृतिक खेती की विभिन्न विधियॉं तथा तरीकों के बारे में जाना, जिनको मैंने अपने फार्म पर आत्मा कर्मचारियों के मार्गदर्शन में जीवामृत से शुरू करने का निर्णय लिया। जिसमें मैंने प्रथम वर्ष यूरिया और डी.ए.पी. की जो मात्रा पहले दी जा रही थी। उससे आधी मात्रा अपने खेत में डालना शुरू किया। साथ ही साथ जीवामृत का भी उपयोग शुरू किया। जिसके अच्छे परिणाम सामने आये जिससे मुझे लगा कि अब मैं अपने फार्म को जीरो बजट (प्राकृतिक खेती) बनाऊंगा। इस प्रकार फिर मैंने आत्मा द्वारा आयोजित गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया जैसे राज्य के बाहर प्रशिक्षण, राज्य के बाहर भ्रमण, जिला स्तरीय कार्यक्रमों एवं आत्मा स्टॉफ से निरंतर सम्पर्क कर प्राकृतिक खेती की विभिन्न गतिविधियों को सीखा तथा अपने खेत में प्रयोग किया। विगत वर्ष मैंने आत्मा द्वारा फार्म स्कूल रबी गेहूं फसल पर संचालित किया है। जिसमें भी मैंने प्राकृतिक खेती के सारे घटकों का प्रयोग किया और अन्य कृषकों को भी इसके फायदों के बारे बताया। धीरे-धीरे सीखते हुये मैंने प्राकृतिक खेती के सभी घटक अपने फार्म पर तैयार किये हैं। तथा उनको अपने खेतों में उपयोग किया है। आत्मा द्वारा मुझे प्राकृतिक खेती में प्रोत्साहन के लिये किट भी प्रदाय की गई है। वर्तमान में मेरे फार्म पर एक एकड़ में गेहूं पूरी तरह से प्राकृतिक खेती विधि से लगाया है। तथा एक एकड़ में सरसों फसल भी लगाई गई है। उक्त दोनों खेतों को विगत वर्षों में जीवामृत, घनजीवामृत आदि का प्रयोग किया जाकर, आज पूरी तरह प्राकृतिक खेती में बदल दिया गया है। तथा अन्य खेतों में 50 प्रतिशत यूरिया डी.ए.पी. को कम कर प्राकृतिक खेती के घटकों का प्रयोग किया है। जिसके अच्छे परिणाम प्राप्त हुये हैं। कृषक अरविन्द शर्मा ने बताया कि फार्म पर प्राकृतिक खेती में दस विस्वा खेत में अपने घर के लिये आलू, टमाटर, मिर्ची, बैगन, धनिया, लहशुन, मैथी आदि को हर वर्ष उगाया जाता है। जिससे मुझे केमिकल मुक्त ताजी एवं शुद्ध सब्जी अपने परिवार के लिये प्राप्त होती है। जिसमें एक वर्ष में करीब-करीब 35000 (पैंतीस हजार) की बचत हो जाती है।आगे आने वाले समय में प्राकृतिक खेती में मेरे द्वारा लोकी, तोरई, भिण्डी, खीरा आदि सब्जियों को भी अभी से बुबाई की जाकर फसलों को तैयार किया जा रहा है। मेरे द्वारा बाजार से रासायनिक खाद एवं दबाईयों की खरीदी बहुत ही कम मात्रा में की जाती है। लेकिन जिन खेतों को पूरी तरह प्राकृतिक बना दिया गया है उनमें बाजार के खाद एवं दबाईयां नहीं डाली जाती हैं। जिससे रासायनिक खादों में होने वाले खर्चे को कम किया जा रहा है। जिससे लागत कम होकर आय बढ़ रही है। तथा आगे आने वाले समय में मैं अपने फार्म को अगामी दो वर्षों में आत्मा स्टॉक के सहयोग से 100 प्रतिशत प्राकृतिक खेती में तब्दील कर दूंगा। मैं कृषि विभाग एवं आत्मा विभाग के कर्मचारियों का धन्यबाद देना चाहता हूं। जिनके प्रयास से मेरे साथ-साथ अन्य किसान भी जागरूक हो रहे हैं। आत्मा स्टॉफ के सहयोग से मैंने एक स्वसहायता समूह का गठन किया है। जिसे हम समूह के सदस्यों के साथ केवल प्राकृतिक खेती पर ही काम करेंगे।

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