डिजिटल गिरफ्तारियों के बढ़ते मामलों के बीच पुलिस भी तेजी से जांच कर रही है। अब तक सामने आए मामलों और गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में पता चला है कि आरोपी किस तरह ठगी की रकम को अलग-अलग खातों में ट्रांसफर करते हैं। इनके लिए छोटे और निजी बैंकों में फर्जी खाते खोलना और उनका दुरुपयोग करना आसान है।
देशभर में शातिर लोग साइबर ठगी, खासकर डिजिटल अरेस्ट के जरिए लाखों-करोड़ों रुपए ठग रहे हैं। पुलिस से बचने के लिए जालसाज निजी बैंकों में फर्जी फर्मों के नाम से खोले गए चालू खातों में पैसा जमा करा रहे हैं। वे ऐसे बैंकों को चुन रहे हैं जो लंबे समय से शुरू ही नहीं हुए हैं।
चालू खाते से जिन खातों में पैसा भेजा जा रहा है, वे जालसाजों ने किराए पर ले रखे हैं। ठगी का पैसा हड़पने और पुलिस को भ्रमित करने के लिए देश में एक बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है।
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अब पुलिस इस संबंध में बैंक अधिकारियों के साथ बैठक करने जा रही है। हाल ही में साइबर क्राइम विंग ने ग्वालियर में हुई ठगी की बड़ी घटनाओं पर अध्ययन किया है।
इसमें पता चला है कि ठगी का बड़ा हिस्सा निजी बैंकों के खातों में जमा हुआ है। बता दें, 1 से 8 अक्टूबर के बीच तानसेन नगर निवासी वकील जगमोहन श्रीवास्तव को डिजिटली गिरफ्तार कर 16 लाख रुपए की ठगी की गई।
वहीं, आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. महेश शुक्ला को 30 नवंबर को डिजिटली गिरफ्तार कर 21 लाख रुपए की ठगी की गई। दोनों ही मामलों में पैसे निजी बैंक के अलग-अलग खातों में जमा हुए।
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साइबर क्राइम विंग ने अब तक धोखाधड़ी के कई मामलों में कई आरोपियों को गिरफ्तार किया है। शिक्षिका आशा भटनागर को डिजिटली गिरफ्तार किया गया और मास्टरमाइंड कुणाल जायसवाल व अन्य को 51 लाख रुपये की धोखाधड़ी में पकड़ा गया।
जांच में पता चला कि पीड़ित ने निजी बैंकों के चालू खातों में पैसे जमा कराए थे। ये खाते अलग-अलग राज्यों में थे। जांच में जिन फर्मों के नाम से खाते थे, वे फर्जी पाई गईं।
पीड़ित ने एक-दो खातों में पैसे जमा करवाए। जिन खातों में पैसे ट्रांसफर किए गए, वे मजदूर, नौकरीपेशा, छात्र, आम दुकानदार और ग्रामीणों के नाम पर थे। इनके खाते भी ठगी के नेटवर्क में शामिल आरोपियों ने निजी बैंकों में खुलवाए थे।
हर ट्रांजेक्शन पर कमीशन तय किया जाता था और ठगी की रकम खातों में ट्रांसफर की जाती थी। इन खातों का संचालन ठगी के नेटवर्क में शामिल आरोपी करते हैं।
साइबर क्राइम विंग के सब इंस्पेक्टर धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि इस साल डिजिटल अरेस्ट और अन्य साइबर ठगी के मामलों में करीब 70 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। इसमें मास्टरमाइंड, एजेंट और किराए पर अकाउंट उपलब्ध कराने वाले लोग शामिल हैं।
आरोपियों ने बताया कि निजी बैंकों के कर्मचारी टारगेट पर आते हैं। यहां ज्यादा अकाउंट नहीं होते, कई बैंकों की पूरे शहर में एक या दो ब्रांच ही हैं। इनमें अकाउंट खुलवाने की ज्यादा औपचारिकताएं नहीं होतीं। ऑनलाइन अकाउंट भी अपेक्षाकृत आसानी से खुलवाया जा सकता है। कई ऐसी औपचारिकताएं होती हैं, जिनसे ठग बचते हैं।