- ग्वालियर प्रशासन की कार्रवाई: नौगांव में बेशकीमती जमीन के निजीकरण की जांच शुरू

ग्वालियर प्रशासन की कार्रवाई: नौगांव में बेशकीमती जमीन के निजीकरण की जांच शुरू

सिटी सेंटर क्षेत्र के नौगांव में 4 हेक्टेयर से अधिक जमीन के निजीकरण के मामले की प्रशासन ने एक बार फिर जांच शुरू कर दी है।शिकायतकर्ता ने बताया कि एसडीएम और तहसीलदार की मिलीभगत से जमीन का निजीकरण किया गया है।

ग्वालियर। जिले की सिटी सेंटर तहसील में आने वाले नौगांव में बेशकीमती सरकारी जमीन को प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा निजी हाथों में देने के आदेश की शिकायत की गई है। यह शिकायत प्रमुख सचिव राजस्व से की गई है, जिसके आधार पर ग्वालियर संभाग के डिप्टी कमिश्नर ने कलेक्टर ग्वालियर को नियमानुसार कार्रवाई कर जांच रिपोर्ट देने के लिए पत्र लिखा है।

 इस मामले में शिकायतकर्ता ने बताया है कि पट्टे के संबंध में कोई अभिलेख नहीं मिले, इसके बाद भी अधिकारियों ने न्यायालय के आदेश का पूर्णतया पालन नहीं किया। डिप्टी कमिश्नर ग्वालियर संभाग ने कलेक्टर को लिखा है कि अवर सचिव मध्य प्रदेश शासन राजस्व विभाग के माध्यम से प्राप्त आवेदन पत्र की शिकायत आवेदक अरुण खरे, तहसील मुरार जिला ग्वालियर (मप्र) ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर की है।

पत्र में अनुविभागीय अधिकारी राजस्व झांसी रोड विनोद सिंह एवं तत्कालीन तहसीलदार सिटी सेंटर शत्रुघ्न सिंह चौहान की मिलीभगत से नौगांव क्षेत्र की बेशकीमती सरकारी जमीन का निजीकरण करने के आदेश की जांच की मांग की गई है।

यह है शिकायत

अरुण खरे द्वारा की गई शिकायत में बताया गया है कि तत्कालीन तहसीलदार सिटी सेंटर शत्रुघ्न सिंह चौहान एवं झांसी रोड एसडीएम विनोद सिंह योजनाबद्ध तरीके से सर्वे क्रमांक 110-2 रकबा 1.63 हेक्टेयर एवं सर्वे क्रमांक 111-2 रकबा 2.508 हेक्टेयर कुल रकबा 4.138 हेक्टेयर की जमीन को बेताल सिंह, रामलखन एवं इंदर सिंह पुत्रगण स्वर्गीय शंकर सिंह के नाम पर सरकारी अभिलेखों में दर्ज कराने का प्रयास कर रहे हैं।

करोड़ों की कीमत वाली इस 19 बीघा जमीन को उक्त लोगों के नाम दर्ज करने का आदेश 4 मार्च 2024 को जारी किया गया है। यह आदेश हाईकोर्ट की रिट अपील 392-2020 के अनुपालन में पारित किया गया है तथा केवल उन्हीं पंक्तियों को कोड किया गया है, जिसे कोर्ट ने पूरे मामले का अवलोकन करने के बाद निष्कर्ष रूप में पाया कि स्वर्गीय शंकर सिंह के नाम से पट्टे के संबंध में कोई दस्तावेज या अभिलेख नहीं है, इसलिए तहसीलदार को पूरे दस्तावेज का निरीक्षण करने तथा तर्क प्रस्तुत करने के बाद तर्कपूर्ण आदेश पारित करना चाहिए। आदेश में कहा गया

अपीलकर्ताओं को राहत नहीं दी जा सकती।

प्रतिवादी-राज्य ने रिट कोर्ट के समक्ष अपर आयुक्त, ग्वालियर संभाग द्वारा पारित दिनांक 16 जनवरी 2019 के आदेश को चुनौती दी तथा तर्क दिया कि रिट याचिका क्रमांक 2040/2020 के माध्यम से अपीलकर्ताओं का कहना है कि पिता स्वर्गीय शंकर सिंह को पट्टा क्रमांक 1248/52/58 दिनांक 16-05-1958 दिया गया था तथा उक्त पट्टे के आधार पर उनके पिता वर्ष 2009 में अपनी मृत्यु तक भूमि पर खेती करते रहे, किन्तु हस्तांतरण कार्यवाही में स्वर्गीय शंकर सिंह को पट्टा दिए जाने को दर्शाने वाला कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया।

 कोर्ट ने कहा कि किसी ठोस दस्तावेज के अभाव में यह नहीं माना जा सकता कि अपीलकर्ता (रिट याचिका में प्रतिवादी) अथवा उनके पिता मप्र के अनुसार पट्टाधारक थे, जब तक कि राजस्व प्रविष्टियों को विधि के अनुसार सही नहीं किया जाता।

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