उज्जैन स्थित ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के भक्तों के लिए यह खबर महत्वपूर्ण है। महाकाल मंदिर के पुजारियों ने मंदिर प्रबंधन से मांग की है कि बाबा महाकाल के अलग-अलग मुखारविंदों का पेटेंट कराया जाए। कारण- कुछ लोगों ने इनकी नकल करके नकली मुखारविंद बना लिए हैं और आस्था के साथ छेड़छाड़ की जा रही है।
महाकाल मंदिर के पुजारियों ने मंदिर प्रबंधन समिति से भगवान महाकाल के चेहरों के पेटेंट की मांग की है। पुजारी का कहना है कि कुछ लोगों ने भगवान महाकाल के चेहरों की प्रतिकृतियां बना ली हैं।
ये लोग पधारावाणी (लोगों को अपने घर बुलाकर पूजा-अर्चना करना) के नाम पर देशभर में इनका प्रदर्शन कर रहे हैं। यह आचरण महाकाल मंदिर की धार्मिक परंपरा, मूर्तियों के महत्व और श्रद्धालुओं की भावनाओं का मजाक उड़ाना है।
पुजारियों की मांग है कि ऐसे लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया जाए और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए मूर्तियों का पेटेंट कराया जाए।
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श्रावण-भादों में महाकाल की सवारी निकाली जाती है। भगवान महाकाल चांदी की पालकी में चंद्रमौलेश्वर, हाथी पर मनमोहन, नंदी पर उमा महेश्वर, गरुड़ पर शिव तांडव और होलकर, सप्तधान, जटाशंकर के रूप में दर्शन देने निकलते हैं।
इस सवारी में देशभर से हजारों श्रद्धालु शामिल होने आते हैं। यह मुखारविंद धार्मिक और पौराणिक महत्व का है और धातु से बना है। कुछ स्थानीय और बाहरी लोगों ने संगमरमर के चूर्ण और पिसी मिट्टी को मिलाकर मुखारविंदों की प्रतिकृतियां बना ली हैं।
ये लोग श्रद्धालुओं को भ्रामक जानकारी देते हैं और पधारावाणी के नाम पर घर-घर जाकर इन मूर्तियों को प्रदर्शित करते हैं। पुजारियों का कहना है कि यह कृत्य मंदिर की परंपरा, मुखारविंदों के महत्व और श्रद्धालुओं की भावनाओं का मजाक है।
दो दिन पहले वृंदावन से कुछ लोग भगवान बांके बिहारी की मूर्ति लेकर उज्जैन आए थे। इस पर पं. महेश पुजारी ने बांके बिहारी मंदिर के पुजारियों से चर्चा की तो पुजारियों ने बताया कि बांके बिहारी मंदिर में ऐसी कोई परंपरा नहीं है। मामला बढ़ा और भगवान महाकाल के मुखड़े दिखाने का मामला भी सामने आया। इस पर पुजारियों ने मंदिर प्रशासक से मूर्तियों का पेटेंट कराने की मांग की।
इंटरनेट पर ऐसे कई वीडियो देखने को मिल रहे हैं, जिसमें लोग भगवान महाकाल के मुखारविंदों को लोगों के घरों में ले जाकर एक दिन का उत्सव मनाते नजर आ रहे हैं। जबकि मंदिर में भगवान के मुखारविंदों को जुलूस के अलावा कहीं और ले जाने की परंपरा नहीं है। अगर ये लोग महाकाल के नाम पर ऐसा कर रहे हैं तो यह भक्तों की भावनाओं से खिलवाड़ है और धोखाधड़ी है। - पं. राम पुजारी, मंदिर समिति सदस्य
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भगवान महाकाल के मुखारविंदों के पेटेंट को लेकर पुजारियों की ओर से मांग आई है। इस मामले में हम क्या कर सकते हैं, इस बारे में विधि विशेषज्ञों से राय ली जा रही है। इस बात पर भी विचार किया जा रहा है कि मुखारविंदों के अलावा हम इसमें और क्या-क्या चीजें शामिल कर सकते हैं। - गणेश कुमार धाकड़, प्रशासक महाकालेश्वर मंदिर
पेटेंट एक कानूनी अधिकार की तरह है। यह किसी व्यक्ति या संस्था को किसी खास उत्पाद, खोज, डिजाइन, सेवा पर एकाधिकार देता है। यानी अगर पेटेंट पाने वाले व्यक्ति के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति या संस्था इसका इस्तेमाल (बिना अनुमति के) करता है, तो इसे कानूनन अपराध माना जाता है।