रायपुर दक्षिण उपचुनाव में जीत के बाद भाजपा ने निकाय चुनाव पर फोकस कर दिया है। 1 से 30 दिसंबर तक मंडल और जिला अध्यक्षों का चुनाव होगा, जिसमें जातिगत संतुलन पर जोर रहेगा। 53 लाख सदस्यों के साथ सदस्यता अभियान चल रहा है, नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने की कोशिश की जा रही है। वहीं, उपचुनाव में हार के बाद कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव की तैयारी में है।
रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव में शानदार जीत दर्ज करने के बाद भाजपा ने अब नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में पूरी ताकत झोंकने की तैयारी कर ली है। प्रदेश भाजपा संगठन में चुनाव प्रक्रिया शुरू होने वाली है, जिसके तहत पहले चरण में बूथ कमेटियों का गठन किया जाएगा। इसके बाद मंडल और जिला अध्यक्षों का चुनाव किया जाएगा, जिसमें जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर रणनीति बनाई जाएगी।
प्रदेश के 405 मंडलों में 1 से 15 दिसंबर के बीच मंडल अध्यक्षों का चुनाव किया जाएगा, जबकि 15 से 30 दिसंबर के बीच जिला अध्यक्षों का चयन किया जाएगा। संगठन से जुड़े वरिष्ठ नेताओं ने बताया कि इस प्रक्रिया में सिर्फ अध्यक्ष ही नहीं बल्कि प्रतिनिधियों का भी चुनाव किया जाएगा। नाराज कार्यकर्ताओं को फिर से पार्टी से जोड़ने और उनकी समस्याओं के समाधान पर विशेष जोर दिया जाएगा।
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जातिगत समीकरणों पर फोकस रहेगा, ताकि विभिन्न समुदायों के बीच संतुलन कायम रहे और निकाय चुनाव में किसी भी तरह के असंतोष से बचा जा सके। भाजपा की रणनीति साफ है: निकाय और पंचायत चुनाव में भी जीत का परचम लहराना।
भाजपा ने अपने हालिया सदस्यता अभियान में 53 लाख नए सदस्य जोड़ने का दावा किया है। अब 30 नवंबर तक बूथ कमेटियों का चुनाव पूरा करने की तैयारी है। पार्टी नेताओं ने वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठकें तेज कर दी हैं, ताकि चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा सके।
रायपुर दक्षिण उपचुनाव में हार के बाद कांग्रेस में भी हलचल मच गई है। पार्टी अब समीक्षा से आगे बढ़कर बड़े बदलाव की तैयारी में है। दिल्ली से आने वाली सूची का इंतजार है, जो संगठनात्मक फेरबदल के संकेत दे रही है। उपचुनाव में मिली हार ने कांग्रेस को जमीनी स्तर पर नई रणनीति तैयार करने पर मजबूर कर दिया है।
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निकाय और पंचायत चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिलेगा। भाजपा जहां जीत के लिए जातिगत संतुलन और सांगठनिक मजबूती पर ध्यान दे रही है, वहीं कांग्रेस हार से सीख लेकर अपनी रणनीति बदलने की कोशिश कर रही है। आने वाले चुनाव नतीजे तय करेंगे कि कौन सी पार्टी जनता का भरोसा बरकरार रख पाती है।