श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति मध्य प्रदेश के दौरे पर आए हैं। शनिवार को वे ऐतिहासिक शहर मांडू की इमारतों को देखने गए। यहां उन्होंने हर इमारत से जुड़ी कहानी जानी। वे शुक्रवार को इंदौर पहुंचे। शाम को उन्होंने वहां एक कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया।
श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे शनिवार को सड़क मार्ग से मांडू पहुंचे। विदेशी मेहमान का यहां पहुंचने पर स्वागत किया गया। उनके दौरे को लेकर यहां कड़ी सुरक्षा और कानून व्यवस्था के इंतजाम देखे गए।
विक्रमसिंघे सबसे पहले मांडू के ऐतिहासिक रानी रूपमती महल पहुंचे। यहां उन्होंने गाइड के जरिए मांडू के सदियों पुराने इतिहास को जाना। ऐतिहासिक इमारतों को देखकर पूर्व राष्ट्रपति काफी खुश नजर आए।
रानी रूपमती के दर्शन के बाद वे बाज बहादुर महल और फिर जहाज महल पहुंचे। यहां केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण अधिकारी प्रशांत पाटणकर ने उनका स्वागत किया। पिछले कई दिनों से श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति के मांडू दौरे की तैयारियों पर ध्यान दिया जा रहा था।
इसके चलते शनिवार को यहां लगने वाला साप्ताहिक बाजार प्रभावित हुआ। स्थानीय नागरिकों और पर्यटकों को सुरक्षा व्यवस्था से गुजरना पड़ा।
भारत और श्रीलंका प्राचीन काल से जुड़े हुए हैं। दोनों देशों के बीच शुरू से ही आदान-प्रदान होता रहा है। श्रीलंका में श्री राम और रामायण को लेकर कई साक्ष्य भी मिले हैं। दोनों देशों के खान-पान, पौराणिक कथाओं, खासकर रामायण, बौद्ध धर्म और तमिल भाषा में कई समानताएं हैं।
यह बात श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति और छह बार प्रधानमंत्री रहे रानिल विक्रमसिंघे ने शुक्रवार शाम इंदौर में छात्रों से कही। विक्रमसिंघे अपनी पत्नी मैत्री विक्रमसिंघे के साथ शहर आए और श्री सत्य साईं विद्यालय पहुंचे। यहां उन्होंने खेल परिसर का उद्घाटन भी किया।
शाम को स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में छात्रों को संबोधित करते हुए विक्रमसिंघे ने कहा कि मैं 18 साल बाद फिर इंदौर आया हूं। यहां बहुत कुछ बदल गया है। दिल्ली में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुझसे कहा था कि इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर है। यह मैंने यहां आकर देखा है।
विक्रमसिंघे ने विद्यालयों में खेल सुविधाओं के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि खेल भावी पीढ़ी के मन और शरीर को आकार देते हैं। उन्होंने श्रीलंका के आर्थिक संकट के दौर को याद करते हुए कहा कि आर्थिक संकट के दो कठिन वर्षों में भारत ने काफी मदद की थी।
कार्यक्रम के अंत में विद्यार्थियों ने विक्रमसिंघे से चर्चा भी की और कई प्रश्न पूछे, जिनका विक्रमसिंघे ने उत्तर दिया। कार्यक्रम के दौरान प्रबंध समिति के अध्यक्ष डॉ. रमेश बाहेती ने विद्यालय की ओर से विक्रमसिंघे को स्मृति चिह्न भेंट किया।
विक्रमसिंघे ने कहा कि श्रीलंका और दक्षिण भारत दोनों में तमिल भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका है। तमिल भाषा एक सेतु है जो श्रीलंका और भारत के लोगों को जोड़ती है। यह एक साझा पहचान को बढ़ावा देने में सहायक है।
एक राजनेता के रूप में उन्होंने श्रीलंका के भविष्य और वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका पर अपने अनुभव और विचार भी साझा किए। शुक्रवार सुबह इंदौर आए विक्रमसिंघे ने राजवाड़ा का भी भ्रमण किया।