नई दिल्ली । गंभीर पुरानी बीमारियों के इलाज का खर्च मरीजों की जेब पर भारी पड़ती है। इलाज के खर्च के दबाव में मरीज और उनके परिवार के सदस्य अपने खानपान में कटौती करते हैं। वे खानपान में फल, दूध, पनीर, सब्जियों, मीट व अंडे का इस्तेमाल कम कर देते हैं। इससे पोषण भी प्रभावित होता है। एम्स के गैस्ट्रोलाजी और मानव पोषण विभाग द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। एम्स के गैस्ट्रोलाजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. अनूप सराया के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया, जो हाल ही में एम्स से सेवानिवृत हुए हैं। इस अध्ययन की रिपोर्ट एमरलैंड इनसाइट जर्नल में प्रकाशित हुई है। यह अध्ययन 414 मरीजों के 2,550 परिवार के सदस्यों पर किया गया। अध्ययन में शामिल 62 मरीज ग्रामीण क्षेत्रों के और 38 प्रतिशत मरीज शहरी क्षेत्रों के रहने वाले थे। उनकी औसत उम्र करीब 35 वर्ष थी। करीब 52 प्रतिशत मरीजों को इलाज के लिए अपनी जेब से करीब 20 हजार से एक लाख रुपये, करीब 15 प्रतिशत मरीजों को इलाज पर एक लाख से ढाई लाख और करीब 13 प्रतिशत मरीजों को ढाई लाख से पांच लाख रुपये तक खर्च करना पड़ा था। उन मरीजों से बीमारी से पहले के खानपान और बीमारी के बाद परिवार के सदस्यों के खानपान में आए बदलाव की जानकारी ली गई। इसमें 12 तरह के खाद्य वस्तु शामिल किए गए। अध्ययन में पाया गया कि 80 प्रतिशत परिवारों के परिवार ने खानपान में आटा, चावल, दाल व चीनी का इस्तेमाल कम नहीं किया। लेकिन 48.4 प्रतिशत मरीज और उनके परिवार के लोगों ने फल व करीब 44 प्रतिशत मरीजों के परिवार के सदस्यों ने दूध और करीब 34 प्रतिशत मरीज और उनके परिवार के लोगों ने सब्जियों का इस्तेमाल कम कर दिया। शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों और उनके परिवार के खानपान में पौष्टिक चीजों के इस्तेमाल में 1.8 गुना अधिक कमी आ गई।